Maa

By GS
Published on 2025-06-10

सभी पुष्प सुगंधित उपवन मनोहर

और राग मोह अतुलित प्रेम तजकर

मैं तेरे इस मंदिर के वीराने आया हूँ

मैं तेरे खेल-खिलौने लौटाने आया हूँ


ये समस्त जीवन तुझको ही अर्पण

बस तुझको ही सदा सर्वस्व समर्पण

कि फिर साँझ ढले तेरे द्वारे आया हूँ

मैं तेरे खेल-खिलौने लौटाने आया हूँ


रूद्नन, पल्लव मात्र क्रीड़ा मन पर

नहीं चाहिए तनिक वैभव कण भर

था वंचित जो आज वो पाने आया हूँ

मैं तेरे खेल-खिलौने लौटाने आया हूँ


नही रूचते अब मन को क्षण भर

नही शेष मोह-आसक्ति तृण भर

माथे, चरणों की रज लगाने आया हूँ

मैं तेरे खेल-खिलौने लौटाने आया हूँ


विरक्त रस आज मेरे मस्तक पर

भड़क उठी वही चिंगारी दहक कर

आज अपना सर्वस्व जलाने आया हूँ

मैं तेरे खेल-खिलौने लौटाने आया हूँ


ये संसार अदृश्य बस अब तू ही माँ

हो हर अक्षम्य सब अपराध क्षमा

माँ, मैं तेरा आलिंगन पाने आया हूँ

मैं तेरे खेल-खिलौने लौटाने आया हूँ

More Poetry Posts

Take me Home

Comments

Loading comments...

Add a Comment

"He returns to the door from which he first came out, although in his journey, he went from door to door." - Rumi