Maa

सभी पुष्प सुगंधित उपवन मनोहर
और राग मोह अतुलित प्रेम तजकर
मैं तेरे इस मंदिर के वीराने आया हूँ
मैं तेरे खेल-खिलौने लौटाने आया हूँ
ये समस्त जीवन तुझको ही अर्पण
बस तुझको ही सदा सर्वस्व समर्पण
कि फिर साँझ ढले तेरे द्वारे आया हूँ
मैं तेरे खेल-खिलौने लौटाने आया हूँ
रूद्नन, पल्लव मात्र क्रीड़ा मन पर
नहीं चाहिए तनिक वैभव कण भर
था वंचित जो आज वो पाने आया हूँ
मैं तेरे खेल-खिलौने लौटाने आया हूँ
नही रूचते अब मन को क्षण भर
नही शेष मोह-आसक्ति तृण भर
माथे, चरणों की रज लगाने आया हूँ
मैं तेरे खेल-खिलौने लौटाने आया हूँ
विरक्त रस आज मेरे मस्तक पर
भड़क उठी वही चिंगारी दहक कर
आज अपना सर्वस्व जलाने आया हूँ
मैं तेरे खेल-खिलौने लौटाने आया हूँ
ये संसार अदृश्य बस अब तू ही माँ
हो हर अक्षम्य सब अपराध क्षमा
माँ, मैं तेरा आलिंगन पाने आया हूँ
मैं तेरे खेल-खिलौने लौटाने आया हूँ
"He returns to the door from which he first came out, although in his journey, he went from door to door." - Rumi
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